भ्रूण हत्या को रोकने हेतु एक अजन्मी बेटी की अपने माँ से की गई पुकार। ।। मुझे भी दुनियाँ में आना ।। राही बनकर हैं चलना कली बनक...
भ्रूण हत्या को रोकने हेतु एक अजन्मी बेटी की अपने माँ से की गई पुकार।
।। मुझे भी दुनियाँ में आना ।।
राही बनकर हैं चलना कली बनकर हैं खिलना,
नदी बनकर हैं बहना शीतल जल का हो झरना।
पवित्र गङ्गा की तरह रहना चाहे हर गम पड़े सहना,
मुझे भी दुनियाँ में आना मुझे भी दुनियाँ में आना।
बनूँगी न तुम पर बोझ कभी सदा रहेंगी सोच मेरी,
पढ़ लूँगी भाई की किताबें रह जाये भले चाह अधूरी।
संध्या की तरह है ढलना चाहे प्याले ज़हर पड़े पीना,
मुझे भी दुनियाँ में आना मुझे भी दुनियाँ में आना।
पल रही हूँ गर्भ में तेरे मुझे कोख़ में मत मारों,
इतनी जल्दी से माँ अपनी हिम्मत मत हारों।
न करूंगी माँग कोई चाहे फ़टे कपड़े पड़े पहनना,
मुझे भी दुनियाँ में आना मुझे भी दुनियाँ में आना।
इतनी क्यूँ बनी लाचार जरा सा भी न था प्यार,
फूल जैसी बेटी का तुम करने लगी गर्भ में संहार,
रूखा सूखा भी खा लूँगी मगर न दूंगी कोई ताना,
मुझे भी दुनियाँ में आना मुझे भी दुनियाँ में आना।
महेंद्र (माही) परिहार
संस्कृत व्याख्याता
राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय पादरू जिला बाड़मेर राजस्थान।
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