अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार मूमल गीत गाने वाले दपु खान मिरासी नहीं रहें। @ पूरणसिंह सोढ़ा जैसलमेर। जिले के ख्यातनाम अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकार दप...
अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार मूमल गीत गाने वाले दपु खान मिरासी नहीं रहें।
@ पूरणसिंह सोढ़ा
जैसलमेर। जिले के ख्यातनाम अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकार दपु खान मिरासी का आज निधन हो गया। जैसलमेर की गलियों से लेकर इन्टरनेट पर उनकी आवाज में मूमल गीत गूँज रहा है, मगर आज वो जगह खाली है जंहा एक टाट की बोरी पर कमायचा लेकर दपु खान बैठे रहते थे। दपु खान मिरासी के निधन की खबर आते ही हिन्दू- मुस्लिम सभी की आँखे नम हो गयी गयी, “जैसलमेर रो पपइयो” नाम से मशहूर दपु खान की वो मीठी आवाज भी उन्ही के साथ चली गयी।
जानकारी के अनुसार भाडली गाँव के मूल निवासी दपु खान को दिल का दौरा पड़ा था और वो जोधपुर के निजी अस्पताल में भर्ती थे। वंही शनिवार दोपहर उन्होंने अंतिम साँस ली। जैसलमेर किले के ऊपर और कलाकारों के बीच में पुराने समय से एक वाध यंत्र कमायचा की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए दपू खान तीस वर्षों से दुनिया भर के लोगों का मनोरंजन कर रहे थे।
दपु खान मिरासी पिछले 30 वर्षों से जैसलमेर में रह थे और भाडली नाम के एक छोटे से गाँव में इनका घर हैं। दपु खान ने सीखना शुरू किया जब वह अपने छोटे भाई के साथ एक बच्चा था। वे अपने पिता के साथ कमायचा लेकर बैठे रहते थे और वहीं से वे वाद्य यंत्र सीखने और खेलने लगे।
उन्होंने राग पहाड़ी, राणा और मल्हार में स्व-संगीतबद्ध गीत प्रस्तुत किए हैं। शुरू में जब उन्होंने अपने घर पर बैठकर गाना शुरू किया तो पूरा मोहल्ला उनके घर के आस-पास इकट्ठा हो गया और उन्हें खेलते हुए सुना, जिससे उन्हें जीवन में एक मकसद मिला और वह थी अपने पूर्वजों की इस महान कला को आगे बढ़ाना।
दपु खान हर दिन जैसलमेर के किले में रानी के महल में बैठते थे और कमायचा पे पूरे विश्व के पर्यटको को मूमल सुनाते थे। उन्होंने इस जगह को तब से फिक्स कर लिया था जब कई साल पहले जिला कलेक्टर ने उनसे प्रसिद्ध कमायचा दिखाने और जैसलमेर किले में प्रवेश करने वाले मेहमानों का स्वागत करने का अनुरोध किया था। वह पिछले 25 सालों से इस जगह पर बैठे थे और यह उनके और उनके परिवार के लिए जीवन यापन का एक हिस्सा प्रदान करता है।
दपु खान ने भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में प्रदर्शन किया है। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के लिए व्हाइट हाउस में भी गाया है, जो कुछ साल पहले जोधपुर आए थे और दपु खान को अपने समूह के साथ गाते हुए सुना था।
रेत के बीच में दपु खान और उनके समूह ने अपने शक्तिशाली आत्मीय संगीत में 1500 साल पुरानी विरासत को संभाला। वर्तमान में इनके समूह में चार सदस्य हैं जो शुभ अवसरों पर मंदिरों और शाही दरबार में विभिन्न अवसरों पर गाते हैं।
वे भाटियों (शाही वंश) में आयोजित सभी अवसरों पर प्रदर्शन करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे देवी पूजा के दौरान मंदिरों में जाते हैं।
राजपूत 500 से अधिक वर्षों से उन्हें अपनी सभी शादियों के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, वास्तव में शादी के जुलूस मिरासी के प्रदर्शन के बाद ही शुरू होते हैं। उन्होंने एक साथ विभिन्न शादियों, त्योहारों आदि में पूरे भारत में प्रदर्शन किया।
दपु खान जो एक संगीत की मिसाल थी
जवाब देंहटाएंआज गुम हो गई
ऐ दपु खान तुम्हें नमन
जब तक कोई नया इस विरासत को ना संभाले
रिक्त ही रहेगी