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होलिका होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूर्णिमा सहित सभी जानकारी

होलिका होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूर्णिमा सहित सभी जानकारी पूर्णिमा तिथि 28 मार्च रात 03 बजकर 25 मिनट से29 मार्च रात 12 बजकर 14 मिनट  भद्...

होलिका होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूर्णिमा सहित सभी जानकारी



पूर्णिमा तिथि

28 मार्च रात 03 बजकर 25 मिनट से29 मार्च रात 12 बजकर 14 मिनट 


भद्रा पूंछ

सुबह 10 बजकर 21 मिनट से 11 बजकर 25 मिनट तक

भद्रा मुख

सुबह 11 बजकर 25 मिनट से  दोहपर 1 बजकर 05 मिनट तक।

होलिका दहन मुहूर्त


सायं 06 बजकर 47 मिनट से रात्रि 09 बजकर 11 मिनट तक।

धुलण्डी 29 मार्च सोमवार।



@ आचार्य रणजीत शरण स्वामी
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई है इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है होलिका और प्रह्लाद की है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे। अहंकार में आकर उसने जनता पर जुल्म करने आरम्भ कर दिए… यहाँ तक कि उसने लोगो को परमात्मा की जगह अपना नाम जपने का हुकम दे दिया।

कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप के घर में एक बेटे का जन्म हुआ। उसका नाम प्रह्लाद रखा गया प्रह्लाद कुछ बड़ा हुआ तो, उसको पाठशाला में पढने के लिए भेजा गया पाठशाला के गुरु ने प्रह्लाद को हिरण्यकश्यप का नाम जपने की शिक्षा दी पर प्रह्लाद हिरण्यकश्यप के स्थान पर भगवान विष्णु का नाम जपता था वह भगवान विष्णु को हिरण्यकश्यप से बड़ा समझता था।

गुरु ने प्रह्लाद की हिरण्यकश्यप से शिकायत कर दी हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बुला कर पूछा कि वह उसका नाम जपने के जगह पर विष्णु का नाम क्यों जपता है प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “ईश्वर सर्व शक्तिमान है, उसने ही सारी सृष्टि को रचा है.” अपने पुत्र का उत्तर सुनकर हिरण्यकश्यप को गुस्सा आ गया उसको खतरा पैदा हो गया कि कही बाकि जनता भी प्रह्लाद की बात ना मानने लगे उसने आदेश दिया कहा, “मैं ही सबसे अधिक शक्तिशाली हूं, मुझे कोई नहीं मर सकता मैं तुझे अब खत्म कर सकता हूँ” उसकी आवाज सुनकर प्रह्लाद की माता भी वहां आ गई उसने हिरण्यकश्यप का विनती करते हुए कहा, “आप इसको ना मारो, मैं इसे समझाने का यतन करती हूं” वे प्रह्लाद को अपने पास बिठाकर कहने लगी, “तेरे पिता जी इस धरती पर सबसे शक्तिशाली है उनको अमर रहने का वर मिला हुआ है इनकी बात मान ले ”प्रहलद बोला, “माता जी मैं मानता हूं कि मेरे पिता जी बहुत ताकतवर है पर सबसे अधिक बलवान भगवान विष्णु हैं जिसने हम सभी को बनाया है पिता जो को भी उसने ही बनाया है प्रह्लाद का ये उत्तर सुन कर उसकी मां बेबस हो गयी प्रहलद अपने विश्वास पर आडिग था ये देख हिरण्यकश्यप को और गुस्सा आ गया उसने अपने सिपाहियों को हुकम दिया कि वो प्रह्लाद को सागर में डूबा कर मार दें सिपाही प्रह्लाद को सागर में फेंकने के लिए ले गये और पहाड़ से सागर में फैंक दिया लेकिन भगवान के चमत्कार से सागर की एक लहर ने प्रह्लाद को किनारे पर फैंक दिया सिपाहियों ने प्रह्लाद को फिर सागर में फेंका… प्रह्लाद फिर बहार आ गया सिपाहियों ने आकर हिरण्यकश्यप को बताया फिर हिरण्यकश्यप बोला उसको किसी ऊंचे पर्वत से नीचे फेंक कर मार दो सिपाहियों ने प्रह्लाद को जैसे ही पर्वत से फेंका प्रह्लाद एक घने वृक्ष पर गिरा जिस कारण उसको कोई चोट नहीं लगी हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को एक पागल हाथी के आगे फैंका तो जो हाथी उसको अपने पैरों के नीचे कुचल दे पर हाथी ने प्रह्लाद को कुछ नहीं कहा लगता था जैसे सारी कुदरत प्रह्लाद की मदद कर रही हो।

हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था होलिका अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी दूर करना चाहती थी होलिका को वरदान था कि उसको आग जला नहीं सकती उसने अपने भाई को कहा कि वो प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाएगी वरदान के कारण वो खुद आग में जलने से बच जाएगी पर प्रह्लाद जल जायेगा लेकिन हुआ इसका उलट और आग में होलिका जल गयी पर प्रह्लाद बच गया होलिका ने जब वरदान में मिली शक्ति का दुरूपयोग किया, तो वो वरदान उसके लिए श्राप बन गया रंगों वाली होली (धुलंडी) के एक दिन पूर्व होलिका दहन होता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है, परंतु यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार की धरती पर हुआ था। जनश्रुति के मुताबिक तभी से प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई।

मान्यता है कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में ही वह जगह है, जहां होलिका भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर दहकती आग के बीच बैठी थी। इसी दौरान भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था, जिन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिकलीगढ़ में हिरण्यकश्य का किला था। यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह अवतार लिए थे। भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है। कहा जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया। यह स्तंभ झुक तो गया, पर टूटा नहीं। 

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