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यहां 500 सीढ़ियां चढ़ने के बाद होते हैं माँ के दर्शन, देवी मंदिर के सारे पुजारी मुसलमान।

यहां 500 सीढ़ियां चढ़ने के बाद होते हैं माँ के दर्शन, देवी मंदिर के सारे पुजारी मुसलमान। @ रामप्रसाद सेन जोधपुर। जिले के भोपालगढ कस्बे के बागो...

यहां 500 सीढ़ियां चढ़ने के बाद होते हैं माँ के दर्शन, देवी मंदिर के सारे पुजारी मुसलमान।



@ रामप्रसाद सेन
जोधपुर। जिले के भोपालगढ कस्बे के बागोरिया गांव में पर्वत पर पहाड़ फोड़कर नवदुर्गा प्रकट हुई। देवी के प्रकट स्थान पर आज भी पर्चा बावड़ी मौजूद है। आज पर्वत की चोटी लगभग 3000 मीटर पर दुर्गा माता का भव्य मंदिर बना हुआ है। इस पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए कुल 500 पावड़ियां (चिढिया), 11 पोल से होकर गुजरना पड़ता है। बागोरिया गांव का पुराना नाम नाहरपुरा था। जो बाद में बाघसिंह के नाम पर इस गांव का नाम बागोरिया रखा गया। इस गांव की पौराणिक मान्यताओं के आधार पर माना जाता है कि इस भाखर में कुल 9 देवियां प्रकट हुई। इनमें दो देवी ब्रहामणी माता, कालका माता की पूजा बागोरिया में ही होती है। भैसाद माता यहां से खेजड़ला में गई। एक देवी यहां जोधपुर मेहरानगढ़ दुर्ग पर। एक देवी यहां से साटिका। एक देवी यहां से हालुड़ी में, एक देवी भवाल में गई और शेष दो देवियां भाखर में ही समाहित रही। पुरानी मान्यता में यह बताया गया है कि जोधपुर दुर्ग पहले बागोरिया स्थित भाखर पर बनाया जाना था। लेकिन देवी के चमत्कार से दिन में उसकी चुनाई की जाती और सुबह लोग यहां आकर देखते तो महल की चुनाई वापस बिखरी मिलती। यहां लगभग 1 वर्ष तक जब महल की चुनाई आगे नहीं बढ़ी तो इस दुर्ग को जोधपुर में बनाया गया। इस मंदिर की पूजा सिंधी मुसलमान द्वारा की जाती है जो हिंदू-मुस्लिम एकता की एक अनूठी पहचान है। इस भाखर की जड़ी एक गिड़ा भोमियाजी का स्थान है। वहां पहले स्व. खेमाराम जाखड़ पूजा करते थे। उनका स्वर्गवास होने के बाद वहां भी मुसलमान भाई द्वारा ही पूजा की जाती है। इस भाखर पर नवरात्रा में चैत्र माह आसोज माह में बहुत बड़ा मेला लगता है। यहां पर दूर-दराज के सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने आते है। इस मंदिर के पुजारी हिंदू - मुस्लिम दोनों धर्म का पालन करते है। यहां पर भाखर के नीचे पास के एक खेत में एक छोटा मदरसा भी स्थित है। थानाराम पुर्व संरपच है। इस मंदिर की पाताल में एक और रहस्य सामने आया। इस भाखर के पास में ही एक स्थान नवोड़ा नाड़ा के नाम से जाना जाता है। जहां हाल ही में 5 वर्ष पहले सरकार द्वारा चलित महानेरगा योजना के अंतर्गत वहां खुदाई की गई। जहां एक और बावड़ी पाई गई। वहां और खुदाई की गई तो वहां बावड़ी में जाने के लिए पावड़ियां अन्य पौराणिक अवशेष दिखाई दिए। 



इस देवी मंदिर के सारे पुजारी हैं मुसलमान:
भारतीय गंगा-जमनी तहजीब की बेमिसाल इबारत देखनी हो तो राजस्थान के इस गांव की एक झलक काफी है। हम बात कर रहे हैं राजस्थान में जोधपुर के निकट बसे बागोरिया गांव की।
कहने को यह गांव तो हिंदुओं का है। लेकिन जिस दुर्गा माता के मंदिर में गांव वाले माथा टेकते हैं उसके सारे पुजारी मुसलमान हैं। रमजान हो या नवरात्री यहां सदा माता के जयकारे गूंजते हैं। पुजारी परिवार इस देवी मां को ही अपनी कुल देवी मानता आया है और उनकी सच्ची श्रद्धा के चलते ही इस मंदिर में आज आसपास के हिंदू गांवों में अटूट आस्था है।



दुर्गा माता के मंदिर का निर्माण भी मुसलमान ने करवाया:
पाकिस्तान से आया मुसलमान पुजारी:
मंदिर के पुजारी का नाता पाकिस्तान से रहा है। मुस्लिम पुजारियों के होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। बताया जाता है कि सिंध से मुस्लिम व्यापारियों का दल अपने पशुओं के साथ वर्षों पहले यहां से गुजर रहा था। इनमें से एक व्यापारी यहीं छूट गया और जब वह भूख-प्यास से तड़प रहा था तो इसी स्थान पर उसकी जान बची। वह व्यापारी फिर लौटकर नहीं गया और वहीं मंदिर का निर्माण कराया। यहां के पुजारी का कहना है कि हम पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं और हर धर्म के श्रद्धालु यहां आते हैं।

साम्प्रदायिकता फैलाने वालों के मुंह पर तमाचा: 
पिछले कुछ समय से देश में साम्प्रदायिकता के कई मुद्दे चर्चा में हैं। खास तौर पर बीफ को लेकर छिड़ी जंग देश की अखंडता और सहिष्णुता को खतरे में डालने वाले ऐसे माहौल में बागोरिया गांव गंगा-जमनी तहजीब की बेमिशान नजीर पेश करता है।

दुर्गा मंदिर के पास चलता है मदरसा:
हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों की सौहार्दपूर्ण तस्वीर पेश करते इस मंदिर के पास ही मदरसा भी है। यहां पढ़ाई, मजहब और आपसी रिश्तों के बीच कही भी मनमुटाव जैसी कोई दरार नजर नहीं आती। यहीं नजदीक एक बावड़ी भी है जिसका पानी पवित्र माना जाता है।



अनूठी आस्था : देवी के इस मंदिर में मुस्लिम परिवार कर रहा सेवा।
वर्तमान में अस्सी वर्षीय बुजुर्ग जमालुदीन खां भोपाजी जमाल खांजी माता की सेवा कर रहे हैं। 500-600 साल पहले इनके पूर्वज ऊंटों के काफिले को लेकर मध्यप्रदेश के मालवा जा रहे थे। रात में पूर्वज के सपने में देवी मां ने दर्शन दिए और कहा कि तुम मेरी मूर्ति की पूजा करो। तभी से पीढ़ी दर पीढ़ी ये माता की सेवा में लगे हैं।

पूजा के साथ नमाज भी:
यह परिवार हिन्दू धर्म- संस्कृति की पालना करते हुए पुजारी के रूप में भी तन, मन, धन से सेवा दे रहा है। परिवार के सभी लोग मंदिर जाने के साथ-साथ मस्जिद जाकर नमाज भी अदा करते हैं। मुस्लिम पुजारी ही यहां के क्षेत्रवासियों को हर प्रकार की पूजा-अर्चना करवाते हैं। गांव के लोगों में भी किसी तरह का बैर भाव नहीं है, वे भोपाजी को अपने पुजारी के रूप में सहर्ष स्वीकार कर चुके हैं।

परिवार से ही बनता है पुजारी:
इस मंदिर में माता की पूजा जमाल खां के पुरखों के समय से हो रही है। जिसे वे आज भी निभा रहे हैं। जमाल खां कहते हैं कि मुख्य पुजारी हमारे परिवार से बनता है और मैं मेरे पिताजी के बाद पिछले करीब पचास साल से पुजारी के रूप में मंदिर में माता जी की सेवा करता आ रहा हूं।

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