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भँवर माने पूजन दयो गणगौर: गणगौर त्यौहार का महत्त्व और पूजा विधि एंव कथा।

भँवर माने पूजन दयो गणगौर: गणगौर त्यौहार का महत्त्व और पूजा विधि एंव कथा। भारत रंगों भरा देश है। उसमे रंग भरते है उसके, भिन्न-भिन्न राज्य और ...

भँवर माने पूजन दयो गणगौर: गणगौर त्यौहार का महत्त्व और पूजा विधि एंव कथा।



भारत रंगों भरा देश है। उसमे रंग भरते है उसके, भिन्न-भिन्न राज्य और उनकी संस्कृति। हर राज्य की संस्कृति झलकती है उसकी, वेश-भूषा से वहा के रित-रिवाजों से और वहा के त्यौहारों से, हर राज्य की अपनी, एक खासियत होती है जिनमे, त्यौहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

भारत का एक राज्य राजस्थान आचार्य रणजीत शरण स्वामी के अनुसार जहाँ मारवाड़ीयों की नगरी भी है और, गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पूरे रीतिरिवाजों से मनाते है। गणगौर दो तरह से मनाया जाता है। जिस तरह मारवाड़ी लोग इसे मनाते है ठीक, उसी तरह मध्यप्रदेश मे, निमाड़ी लोग भी इसे उतने ही उत्साह से मनाते है। त्यौहार एक है परन्तु, दोनों के पूजा के तरीके अलग-अलग है। जहा मारवाड़ी लोग सोलह दिन की पूजा करते है वही, निमाड़ी लोग मुख्य रूप से तीन दिन की गणगौर मनाते है।

इस वर्ष 2021 में गणगौर का त्यौहर आज 15 अप्रैल को मनाया जाएगा।

गणगौर पूजन का महत्व
गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री के द्वारा मनाया जाता है। इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधी-विधान से गणगौर जिसमे, भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती है। इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये, अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि, विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिये होता है। जिसमे कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पुरे, सोलह दिन विधी-विधान से पूजन करती है।

गणगौर पूजन की विधी
मारवाड़ी स्त्रियाँ सोलह दिन की गणगौर पूजती है। जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है। यह गणगौर अकेली नही, जोड़े के साथ पूजी जाती है। अपने साथ अन्य सोलह कुवारी कन्याओ को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है। सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाती है अंत मे, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है। फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा अर्थात् जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा प्रारंभ होती है। ऐसी स्त्री जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है।

गणगौर
सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साथिया बना कर, पूजन किया जाता है। जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है। ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है। अब चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है। फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता। उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है।
दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है। उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है। तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है। उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है।
ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है। अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है। उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है।  गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) - गणगौर माता (पार्वती माता) के, मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है। इन सभी का पूजन होता है, प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है।

गणगौर माता की कहानी
राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब। राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये। एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया। छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे। छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे , सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे। सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया। माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो। बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी, माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे। ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली, बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा। माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले। माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला, चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली, और छीटो दियो, ओबरी खुल गई। उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है, सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है। है गणगौर माता, जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना। कहता ने, सुनता ने, सारे परिवार।

गणपति जी की कहानी
एक मेढ़क था, और एक मेंढकी थी। दोनों जनसरोवर की पाल पर रहते थे। मेंढक दिन भर टर्र टर्र करता रहता था। इसलिए मेंढकी को, गुस्सा आता और मेंढक से बोलती, दिन भर टू टर्र टर्र क्यों करता है। जे विनायक, जे विनायक करा कर। एक दिन राजा की दासी आई, और दोनों जना को बर्तन मे, डालकर ले गई और, चूल्हे पर चढ़ा दिया। अब दोनों खदबद खदबद सीजने लगे, तब मेंढक बोला मेढ़की, अब हम मार जायेंगे। मेंढकी गुस्से मे, बोली की मरया मे तो पहले ही थाने बोली कि, दिन भर टर्र टर्र करना छोड़ दे। मेढको बोल्यो अपना उपर संकट आयो, अब तेरे विनायक जी को, सुमर नही किया तो, अपन दोनों मर जायेंगे। मेढकी ने जैसे ही सटक विनायक, सटक विनायक का सुमिरन किया इतना मे, डंडो टूटयों हांड़ी फुट गई। मेढक व मेढकी को, संकट टूटयों दोनों जन ख़ुशी ख़ुशी सरोवर की, पाल पर चले गये। हे विनायकजी महाराज, जैसे मेढ़क मेढ़की का संकट मिटा वैसे सबका संकट मिटे। अधूरी हो तो, पूरी कर जो,पूरी हो तो मान राखजो।

गणगौर उद्यापन की विधी
सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है।

विधी
आखरी दिन गुने (फल) सीरा, पूड़ी, गेहू गणगौर को चढ़ाये जाते है।
आठ गुने चढा कर चार वापस लिये जाते है।
गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है।
दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है, जिसमे पपड़ी या गुने (फल) रखे जाते है। उसमे सोलह फल खुद के,सोलह फल भाई के,सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है।
चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे। पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है।
शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है।
गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है।
@ आचार्य रणजीत शरण स्वामी

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