पृथ्वी दिवस विशेष: एक दिन की औपचारिकता से नहीं बचेगा जीवन: दीनाराम सुथार @ पूरणसिंह सोढ़ा जैसलमेर। पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह है, जहां जीवन है...
पृथ्वी दिवस विशेष: एक दिन की औपचारिकता से नहीं बचेगा जीवन: दीनाराम सुथार
जैसलमेर। पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह है, जहां जीवन है। इस पर निवासित जीव श्रेष्ठ मानव ने अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण के साथ असंतुलन की स्थिति उत्पन्न की। विकास एवं औद्योगिकरण के नाम पर पृथ्वी के समस्त संसाधनों का अंधाधुन्ध दोहन करना शुरू किया, जिससे पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि, तापमान में वृद्धि अत्यधिक खनन, वनों की कटाई, जैव विविधता पर संकट, जलवायु में अवांछित परिवर्तन, ओजोन परत में क्षय, समुद्रों में तेल रिसाव, समुद्री जल स्तर में वृद्धि, अत्यधिक कीटनाशकों का उपयोग के कारण जीवन पर खतरा मंडराने लगा। तब मार्च 1970 में यूएसए के सैन फ्रांसिस्को निवासी शांति कार्यकर्ता जॉन मेककोनल ने बसंत विषुव के दिन (21 मार्च) पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों का संयमित उपयोग करने जीवन व पृथ्वी को बचाने का सपना लेकर पृथ्वी दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा, तत्पश्चात सामयिक समस्याओं मानवीय तथा प्राकृतिक विपदाओ से दुखी होकर पर्यावरण संरक्षण व जागरूकता के लिए अमेरिकी निवासी गेलर्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल 1970 को पृथ्वी दिवस के रूप में नियमित मनाने का संकल्प लिया । तब से पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को मनाया जाता है, इस दिन अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर सरकारों संगठनों संस्थाओं व नागरिकों द्वारा अपने अपने स्तर पर विभिन्न पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह आयोजन वार्षिक होता है, जिसमें वर्तमान में लगभग 192 देश पर्यावरण पर आधारित ज्वलंत मुद्दों पर विचार विमर्श कर नियंत्रित करने के लक्ष्य निर्धारित कर तय समय में कार्य योजना बनाई जाती है।
पृथ्वी या पर्यावरण संरक्षण का अर्थ
पृथ्वी या पर्यावरण संरक्षण का व्यापक अर्थ में संपूर्ण पर्यावरण के घटक शामिल है, जिसमें जल, वायु, वनस्पति, वन्य जीव, खनिज, जैव विविधता, मृदा आदि इन सब का आवश्यकता अनुसार संयमित उपयोग करना भावी पीढ़ी के लिए बचा कर रखना, जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहे। इन संसाधनों की रक्षा के साथ वृद्धि के प्रयास करने चाहिए नियंत्रित विकास व औद्योगिकरण को अपनाना चाहिए, जिससे पर्यावरण को खतरा उत्पन्न ना हो। यदि असंतुलित विकास को अपनाया गया तो पृथ्वी के सारे संसाधन नष्ट हो जाएंगे, जीवन समाप्त हो जाएगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बताया कि "पृथ्वी लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त है तथा बढ़ते लालच की पूर्ति के लिए नहीं।" महात्मा गांधी ने नेल्सन से पहले आधुनिक तकनीकी के अंधानुकरण करने के विरुद्ध सचेत किया था। मत्स्य पुराण के 1 श्लोक में पर्यावरण व पेड़ की महता इस प्रकार बताई गई है दस कुओ को खुदवाने जितना फल एक बावड़ी में, दस बावड़ी को खुदवाने जितना फल एक तालाब में, दस तालाब खुदवाने जितना फल एक युगी पुत्र, दस युगी पुत्रों के बराबर फल वृक्ष को लगाकर बड़ा करने में है।
पर्यावरण संरक्षण के प्रयास
प्राचीन समय से पर्यावरण के प्रति जागरूकता रही है, पेड़ पौधों जीव जंतुओं तथा अजैविक घटकों ( जल वायु नदी पर्वत मिट्टी) के प्रति श्रद्धा रही है। धरती को माता के समान वंदनीय माना गया है, ग्रामीण क्षेत्रों में ओरण गोचर भूमि प्राचीन काल से रखी जाती थी। पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों की सुरक्षा के लिए कई पुरुषों व महिलाओं ने अपने प्राण न्योछावर किए है। वर्तमान समय में उपभोक्तावादी संस्कृति, तीव्र जनसंख्या वृद्धि तथा बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरण तथा पृथ्वी की स्थिति विचारणीय है। एक तिहाई भू - भाग पर वन होने चाहिए जो लक्ष्य से कम है। पर्यावरण दूषित हो रहा है, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि तथा तापमान में वृद्धि हो रही है ग्लेशियर पिघल रहे हैं कृषि भूमि घट रही है। पर्यावरण में असंतुलन जलवायु में अवांछित परिवर्तन हो रहें हैं, जैव विविधता को नुकसान हो रहा है, स्वच्छ जल तथा वायु उपलब्ध नहीं हो रहा है। इन सब समस्याओं में कमी लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण एजेंसियां प्रयासरत है, जिसमें यूनाइटेड नेशन एनवायरमेंट प्रोग्राम (UNEP), वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO), खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) संस्थाएं पर्यावरण स्वास्थ्य तथा कृषि पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चला रहे हैं, यूएनईपी द्वारा 1992 में रियो डी जेनेरियो तथा 2002 में जोहांसबर्ग में पर्यावरण एवं विकास तथा पर्यावरण के सतत विकास पर सम्मेलन आयोजित किए गए यूएनईपी समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय व सरकारों का ध्यान ज्वलंत मुद्दों की तरफ आकर्षित करता है। यह पर्यावरणीय परंपराओं को एनजीओ के साथ कार्य करके विश्व को स्वच्छ तथा स्वस्थ बनाने के लिए आर्थिक सहायता करता है, इसके अलावा यू एन ओ तथा कुछ देशों के संगठन जलवायु, भूमंडलीय तपन, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना पर्यावरण प्रदूषण को रोकने प्राकृतिक आपदा नियंत्रण जैसी कई समस्याओं पर कार्य कर रहे हैं। इन सब प्रयासों के बावजूद पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन में ज्यादा कोई सुधार नहीं हुआ है। वर्ष में एक दिन पृथ्वी दिवस व पर्यावरण दिवस मनाने फोटो खींचने तथा सोशल साइट पर शेयर करने से स्थिति में सुधार नहीं होगा, इसके लिए प्रत्येक दिवस को पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्धन दिवस के रूप में मनाने, स्वच्छता रखने, संपूर्ण जनसंख्या को जागरूक करने से, इनका नियमित रूप से पालन करने व पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करने से होगा।
भावी पीढ़ी को क्या देंगे हम
मनुष्य ने भौतिकवादी, विलासवादी तथा स्वार्थ पूर्ण प्रवृत्तियो के कारण संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर पृथ्वी तथा पर्यावरण को दूषित करके जीवन को खतरे में डाल दिया है। स्वच्छ जल, स्वच्छ वायु तथा स्वच्छ व कृषि योग्य भूमि आज पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं हो रही है, वनस्पति और पेड़ पौधे काट दिए गए हैं, भूमि को खोदकर तथा कई स्थानों पर मलबे के ढेर जमा कर दिए हैं, कई जीव जंतु तथा वनस्पतियां विलुप्त प्राय हो गए हैं, प्राकृतिक सौंदर्य समाप्त हो गया है। हमारे शास्त्रों में पृथ्वी को माता तथा हम सबको उसके पुत्र बताए गए हैं, हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए प्राकृतिक संसाधन तथा पर्यावरण को हमारे लिए अच्छी स्थिति में रखा। हमने भावी पीढ़ी के लिए गंदगी, बीमारियां, प्राकृतिक आपदाएं, पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न करके रखा है, जिससे उनका जीवन जीना भी मुश्किल हो जाएगा। हम सबको जागरूक होकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेना होगा, पृथ्वी को हरा भरा तथा स्वच्छ बनाना होगा संसाधनों का सीमित उपयोग करना होगा, कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करना होगा। हमें अपने भौतिकवादी जीवन से पर्यावरण की तरफ से लौटना होगा, पर्यावरण प्रेमियों के जीवन से प्रेरणा लेकर के पर्यावरण के जैविक तथा अजैविक घटकों को बचाना होगा, पृथ्वी पर बढ़ रहे कचरे व गंदगी का पुनर्चक्रण की प्रक्रिया को अपनाना होगा प्लास्टिक उपयोग को नियंत्रित करना होगा।
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