इस वर्ष के राजा तथा मंत्री दोनों पद होंगे मंगलदेव के पास, मंगलवार से ग्रहों की नई सत्ता निर्धारण के साथ दुर्गोत्सव पर्व का शुभारंभ। - ज्योति...
इस वर्ष के राजा तथा मंत्री दोनों पद होंगे मंगलदेव के पास, मंगलवार से ग्रहों की नई सत्ता निर्धारण के साथ दुर्गोत्सव पर्व का शुभारंभ।
- ज्योतिष तथा धार्मिक दृष्टि से विशेष होते है वासंतिक नवरात्रा।
सिरोही/पिंडवाड़ा। (हर्षवर्द्धन व्यास)।
मंगलवार चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से नवीन संवत्सर का प्रारंभ हो रहा है। इसी दिन से नवग्रहों की नई सत्ता का निर्धारण भी होगा। इस बार की सत्ता में मंगल ग्रह को इस वर्ष का राजा तथा मंत्री बनाया गया है। योगेश्वरी ज्योतिष कार्यालय के ज्योतिषाचार्य पंडित यश व्यास ने बताया कि मंगलवार से विक्रम संवत 2078 का प्रारंभ हो रहा है। इस वर्ष बृहस्पति ग्रह की गणना मान के अनुसार 60 संवत्सर में से 49 वा संवत्सर शुरू होगा। इस वर्ष का नाम राक्षस संवत्सर के नाम से प्रचलित होगा। वहीं इस वर्ष के मंत्रिमंडल में राजा व मंत्री का पद मंगल के पास होगा तथा खरीफ फसल के स्वामी शुक्र तथा रबी फसल के स्वामी बुध होंगे। वही वर्षा, मेघ आदि के स्वामी पति चंद्रदेव होंगे तथा रसेश तथा निरसेश का पद सूर्य देव तथा शुक्र देव को प्राप्त हुआ है। वही फलेश चंद्र तथा धनाध्यक्ष का कार्यभार देव गुरु बृहस्पति को प्राप्त हुआ है। ग्रहों की नई सत्ता के साथ नव दुर्गा के विशेष पूजन एवं आराधना के लिए इसी दिन से वासंतिक नवरात्रि का पर्व भी शुरू होगा। वर्ष की पहली नवरात्रि ज्योतिष एवं अध्यात्म की दृष्टि से विशेष महत्व पूर्ण है। इस वर्ष नवरात्रि का प्रारंभ मंगलवार को होने से मां दुर्गा की सवारी अश्व पर होगी। ज्योतिषाचार्य पंडित व्यास का कहना है कि, देवी भागवत पुराण के अनुसार, जब माता दुर्गा नवरात्रि पर घोड़े की सवारी करते हुए आती हैं, तब पड़ोसी देशो से युद्ध, गृह युद्ध, आंधी-तूफान और सत्ता में उथल-पुथल, सरकार के खिलाफ जनाक्रोश जैसी गतिविधियां बढ़ने की आशंकाएं रहती हैं। लेकिन मां दुर्गा की भक्ति भाव एवं श्रद्धा से पूजन आराधना करने से अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होती है।
वासन्तिक नवरात्रि का धार्मिक महत्व:
धार्मिक दृष्टि से नवरात्र का अपना अलग ही महत्व है। क्योंकि, इस समय आदिशक्ति जिन्होंने इस पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढ़का हुआ है जिनकी शक्ति से सृष्टि का संचलन हो रहा है जो भोग और मोक्ष देने वाली देवी हैं वह पृथ्वी पर होती है। इसलिए इनकी पूजा और आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी होती है। जहां तक बात है चैत्र नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का काम शुरु किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
वासन्तिक नवरात्रि का ज्योतिषीय महत्व:
ज्योतिषीय दृष्टि से चैत्र नवरात्र का खास महत्व है। क्योंकि, इस नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति, वर्षा, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आंकलन किया जाता है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे।
शुभ मुहूर्त में होगी घटस्थापना:
मंगलवार को नव वर्ष के आरंभ के साथ-साथ वासन्तिक नवरात्रि का भी शुभारंभ हो रहा है। नौ दिवसीय दुर्गोत्सव में देवी की घट स्थापना कर श्रद्धालुओं को नित्य पूजन, अर्चन, दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं नवार्ण मंत्रों के जाप करने से अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। इस वर्ष घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 9:29 से 11:04 तक चंचल वेला एवं 11:04 से 1:03 तक लाभ, अमृत तथा अभिजीत मुहूर्त श्रेष्ठ है।
पंडित यश व्यास,योगेश्वरी ज्योतिष कार्यालय, पिंडवाड़ा।
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