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धोरीमना नगर में चातुर्मास के दौरान बह रही है ज्ञान की गंगा।

धोरीमना नगर में चातुर्मास के दौरान बह रही है ज्ञान की गंगा। बाड़मेर/धोरीमन्ना 04 अगस्त। धर्म नगरी धोरीमन्ना में श्री कुशल कान्ति प्रताप नगर म...

धोरीमना नगर में चातुर्मास के दौरान बह रही है ज्ञान की गंगा।




बाड़मेर/धोरीमन्ना 04 अगस्त। धर्म नगरी धोरीमन्ना में श्री कुशल कान्ति प्रताप नगर में वसीमालाणी रत्नशिरोमणि आचार्य प्रवर श्री जिन मनोज्ञसूरीश्वरजी म.सा. व नयज्ञसागर जी म.सा. व साध्वी जयरत्ना श्री जी म.सा. की पावन निश्रा में चल रहे चातुर्मास के दौरान दैनिक प्रवचन माला में बुधवार को आचार्य प्रवर श्री जिन मनोज्ञसूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में आराधकों सम्बोधित करते हुए कहा कि एक छोटे से बीज में विशाल भविष्य छुपा होता है, इस बीज का सही ढंग से सिंचन, पोषण किया जाए तो वह वृक्ष रूप में बन जाता है, मनुष्य में भी एक अद्भुत शक्ति समाहित है। सामान्य व्यक्ति गुणों को धारण कर इस परमात्म पद को प्राप्त कर सकता है। पुण्यशाली के प्रभाव से जंगल में मंगल का वातावरण निर्मित हो जाता है। सब में भव्यता और दिव्यता भगवत्ता का स्वरूप है, जिसे हमें आत्मा साकार करके पुरुषार्थ करके प्राप्त करना है। 



यह जिनवाणी धोरीमन्ना में चातुर्मासार्थ विराजमान परम पूज्य आचार्य श्रीजिनमनोज्ञसुरीश्वरजी महाराज साहब धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रवचन की श्रृंखला में फरमा रहे हैं कि महापुरुषों ने भव्य प्राणियों के लिए एक सुंदर व्यवस्था दिए और करुणा दया भाव से ज्ञान की गंगा खोल दी है। सामान्य व्यक्ति से असामान्य बनने के लिए उनके ह्रदय में सबसे पहले मैत्री भाव होना आवश्यक है। गुणीजनों के गुणों को देखकर हमें प्रसन्नता होनी चाहिए और उन गुणों की अनुमोदना करनी चाहिए। हमें व्यवहार समझना है संसार व्यवहार के आधार पर चल रहा है, अगर व्यवहार कठोर प्रकट हो तो आप सामान्य जीवन में सफल नहीं हो सकते। मध्यस्थ भाव जीवन में उतरे तो उस आत्मा का उत्थान पथ पर अग्रसर हो जाता है, व्यक्ति अगर बातों में अटक जाए और भ्रमणाओ में भटक जाए तो समय ऐसे ही पसार हो जाएगा। हमें संसार को सद्गुरु की नजर से निहारना चाहिए। निज स्वभाव में आने के लिए महापुरुषों ने दो रास्ते बताए निश्चय और व्यवहार। निश्चय में नियम प्रसंग विधि का कोई फेरफार नहीं होता। व्यवहार जिसमें समयानुसार फेरबदल होता है, पर निश्चय सत्य हैं और सत्य में बदलाव नहीं होता। अग्नि का स्वभाव उष्ण और जल का स्वभाव शीतल है वैसे ही आत्मा का स्वभाव मुक्त अवस्था को पाना है। श्री शान्तिनाथ जैन श्री संघ धोरीमन्ना के अध्यक्ष बाबूलाल लालण व ट्रस्टी ओमसा गांधी ने बताया कि चातुर्मास में तप आराधना की कड़ी में बुधवार को पंच परमेष्ठी श्रेणिक तप की तपस्या के तीसरे चरण का प्रथम उपवास एवं सांकलिया तेला और आयम्बिल की तपस्या नियमित जारी है। प्रतिदिन दोपहर में स्वाध्याय तत्व ज्ञान की कक्षा में युवा भाग ले रहे हैं। लालण ने बताया कि बुधवार को रात्रि में तपस्वियों की अनुमोदना के लिए भक्ति भावना का कार्यक्रम रखा गया, जिसमें संगीतकार दिलीप भाई सिसोदिया ने भजनों की सरिता बहाई। बुधवार को छत्तीसगढ और कई बाहर से पधारे हुए गुरूभक्तों का श्री शान्तिनाथ जैन श्री संघ धोरीमन्ना द्वारा अभिनन्दन किया गया और श्री शान्तिनाथ जैन श्री संघ धोरीमना द्वारा संघ पूजन किया गया। चातुर्मास के दौरान प्रतिदिन आराधना व तपस्या दिनों दिन बढ रही है।

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