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पत्रकार की पहल और जनता का भरोसा दोनों के मिलन से बाड़मेर को मिली उम्मीद की नई किरण।

पत्रकार की पहल और जनता का भरोसा दोनों के मिलन से बाड़मेर को मिली उम्मीद की नई किरण। दोस्तो, आज का जमाना, जहाँ बाप अपने सगे बेटे पर भरोसा नही...

पत्रकार की पहल और जनता का भरोसा दोनों के मिलन से बाड़मेर को मिली उम्मीद की नई किरण।



दोस्तो, आज का जमाना, जहाँ बाप अपने सगे बेटे पर भरोसा नहीं करता हैं। उसी हीं ज़माने में किसी की एक पहल से लाखों रुपयों का इकला होना, हर एक मिनट मदद में इजाफा होना, यह चमत्कार नहीं तो क्या हैं? आज समाज ने समाज में हीं फैली नकारात्मकता के चेहरे पर एक जोरदार तमाचा मारा हैं, एक ऐसा तमाचा जिसकी गूंज चारो दिशाओं में प्रकाश की भाँति फैल रही हैं।

इस फेसबुकिया दुनिया में जहाँ हर रोज एक दूसरे के पर्सनल दुखड़ो को सार्वजनिक मंच पर चंद व्यूज पाने के लिए नीलाम किया जा रहा हैं, एक दूसरे में होड़ इस कदर हैं, जो ज्यादा नीलाम करेगा, उसको उतने हीं ज्यादा लोग देखेंगे बाड़मेर में इस कदर अंधेरा छा रखा था, लोग मीडिया को कॉमेडी का स्टेज एवं पत्रकार को जोकर समझ रहे थे लेकिन उसी घने अंधरे में उम्मीद की किरण "अशोक शेरा" की एक पहल बन कर निकली। यह पहल थी, सड़क हादसे से अनाथ हुई 7 बेटियों के मदद की।

हादसे ने काल बनकर माँ बाप को उनसे छीन लिया, आँखों में आंसू थे फिर भी आंखे माँ बाप के वापिस आने का इंतजार कर रही थी लेकिन कौन हिम्मत करें उनसे सच बोलने की। कल तक जो परिवार अपने भविष्य को लेकर सपने संजो रहा था, आज वो हीं परिवार काल की चपेट में आकर तितर बितर हो बैठा था। अब जो परिवार बचा था, उसे ना तो अपने वर्तमान का पता था और ना हीं अपने भविष्य का

जब मीडियाकर्मी "शेरा " का कैमरा इस परिवार पर पड़ा, तो उनकी रिपोर्टिंग में उस दर्द का एहसास हो रहा था, जिस दर्द से वो अनाथ बच्चियां गुजर रही थी। कैमरे पर लोगो से अपील हुई। और लोगो में एक एक बूँद से खाली पड़े घड़े को इतना भर दिया की, अनाथ हुई बच्चियां पूरे बाड़मेर को अपना परिवार मान बैठी हैं।

अब तक क्राउडफंडिंग से मिली एक करोड़ से ज्यादा की मदद

मार्केटिंग जब भी पढ़ते हैं, तब सोर्सस टू फण्ड बिजनेस में क्राउडफंडिंग को सबसे प्रभावी तरीका माना जाता है। आज क्राउडफेंडिंग से 50 लाख से ज्यादा की मदद अनाथ हुए बच्चों को सीधे उनके बैंक अकाउंट तक पहुंची हैं।

सलाह-

गाड़ी में सवार होने और मंजिल तक पहुंचने में अंतर होता हैं। पाठकों, आपने बच्चों को गाड़ी में तो बिठा दिया हैं। लेकिन उनकी मंजिल उनके माँ बाप द्वारा उनके लिए देखें गए सपने पूर्ण करने पर पूरी होंगी। उनके सपनो को पूरा करने के लिए एक ट्रस्ट का निर्माण किया जावे, जो इन बच्चों के भविष्य के लिए नियोजन करेगा। तमाम रूपया जो भी मदद के रूप में आया हैं, उसकी पूर्ण जिम्मेदारी ट्रस्ट को सुपुर्द की जावे।

अंत में "शेरा" के लिए एक मजरूह सुल्तानपुरी की एक शायरी-

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।

आपका अपना मोती महावीर जैन
दैनिक मारवाड़ दूत, बाड़मेर दैनिक मरुलहर, जोधपुर (एक सकारात्मक सोच के साथ )

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